April 2020

जब-जब तुम दुनिया से अलग रहें, मानो तुम गलत रहें,
इन शब्दों को गलत लिखकर, मैं सबकी हथेली में छाप दूंगा।

इन नाकामियों से कहो अपनी हद में रहे, 
मैं शायर हूँ अपनी कलम से एक-एक को माप दूंगा।।

✍✍
~मोhit

रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आतें हैं,
सब दिखावें के तारे नज़र आते हैं।

कोई पागल ही मुझे मोहब्बत से नवाज़ेगा,
आप तो ख़ैर मुझे समझदार नज़र आतें हैं।।

हाँ! ज़ख़्म भरने लगे हैं पिछली मुलाक़ातों के,
शायद फिर मुलाक़ात के आसार नज़र आतें हैं।

बस एक ही बार हुआ हूँ उन पर 'मोहित' 
और फिर वो ही लगातार नज़र आतें हैं।

~मोhit
✍✍

बहुत पहुँचा हुआ मुसाफ़िर मैं भी हूँ,
दिल भटकने में माहिर मैं भी हूँ।

कौन-कौन करेगा 'मोहित' इश्क़ से मुझको,
ग़र तू काफ़िर है तो ढीट मैं भी हूँ।।

~मोhit
✍✍

अभी तो बस याद आए हो,
बाद में तुम्हारी आस लगेगी।
न मिला तो दिल रोएगा,
क्या मुझको रोने की छूट मिलेगी?

आज तो पत्थर बाँध लिया है,
लेकिन कल फिर भूक लगेगी।
एक दिन ऐसे भूलूँगा दुनिया को,
की दुनिया मुझ को याद करेगी।

~मोhit

तुम क्या जनों..
जब दिल उदास होता हैं,
दर्द कुछ खास होता हैं,
हर सोच,
हर याद,
हर बात,
हर पल,
बड़ा बे-आस होता हैं,
बस एक आवाज़ सी होती हैं,
वो भी बे-साज़ सी होती हैं,
न कोई अपना-सा लगता हैं,
सब एक सपना-सा लगता हैं,
ये दिल क्यों उदास होता हैं?
तुम क्या जनों....

~मोhit

आज भी घाट किनारे वोही पहरा रहा,
मैं कितनी सदियों बाद आया मगर प्यासा ही रहा।

किसको फुरसत थी कि एक पल मेरी भी तरफ़ देखे कोई,
मैं जहाँ भी था, जैसे भी था, तन्हा रहा।।

✍✍
~मोhit

एक जंगल सा है, जिसका रास्ता नही मिलता हैं,
वक़्त हैं, अभी से घर लौट चलो अभी उजाला हैं।

रोज़ कहीं ठहर सा गया हूँ मैं,
की हाथों में दिया तो हैं मगर अंधेरा हैं।।

✍✍
~मोhit

निगाहें मेरी मुंतज़िर हैं, वो पूछती हैं जुस्तुज़ू क्या हैं,
हक़ीक़त ये हैं कि मुझे भी नही मालूम कि मेरी आरज़ू क्या हैं।

बदलतीं जा रही हैं करवटों पे करवटे दुनिया,
तज़ुर्बे पूछती हैं मुझसे की मेरी आयु क्या हैं।।

देखो न ज़िन्दगी मेरी कितनी सिमट गई,
भागते थे जिसके पीछे बच्चों की तरह,

और वो पतंग की तरह कट गई।

जिस जगह हम रखें थे उसको,
उस जगह से वो हट गई,

और एक रोज़ वो रोना चाहती थी,
आके वो फिर मुझसे लिपट गई।।

✍✍
~मोhit

मैंने खुद अकेले रहने की सज़ा कुबूल की हैं,
ये मेरा प्यार हैं या मैंने कोई भूल की हैं।
ख़्याल आया है तो रास्ता भी बदल लेंगे,
अभी तलक़ तो मैंने अपनी बहुत ज़िंदगी फ़िज़ूल की हैं।।

ख़ुदा करे कि मैं ज़मी का ही हो जाऊं,
आधी से ज़्यादा अपनी ज़िंदगी मैंने सफ़र में धूल की हैं।
ये शौहरत, ये नाम हमें युही अता नही हुई हैं,
ज़िन्दगी ने हम से भी कई कीमत वसूल की हैं।।

~मोhit

सफ़र क्या, क्या मंज़िल की अब कुछ याद नही,
लोग रुख़सत हुए कब कुछ याद नही।

दिल में हर वक़्त होती हैं कुछ चुंबन,
थी मुझे भी किसी की तलब कुछ याद नही।।

वो चाँद थी, या सितारा या कोई फूल,
या एक सूरत थी अज़ब कुछ याद नही।

काश भूल सकते हम भी अतीत अपना,
याद आये भी तो सब कुछ याद नही।।

ये हक़ीक़त हैं की अहबाब को हम,
याद ही कब थे जो हो अब कुछ याद नही।

याद हैं मुझे यू लोगो का 'मोहित' करना,
की मेरा नाम तो दूर, सूरत भी उनको अब कुछ याद नही।।

✍🏻✍🏻
~मोhit

हर वक़्त माँग में रहने के लिए,
कुछ तो हुनर जरूरी हैं जीने के लिए।

मैंने कई देखें हैं जो मर्द की तरह रहते थे,
अब कठपुतली बन गए दरबार मे रहने के लिए।।

ऐसी मजबूरी तो नही है, की पैदल चालु मैं,
ख़ुद को गर्माता हूँ रफ़्तार में रहने के लिए।

आज बदनामी और शौहरत का ऐसा रिश्ता हैं,
की लोग नंगे हो जाते हैं अख़बार में रहने के लिए।।

~मोhit

जमाना उच्चे लोगो का ही साथ देखता हैं,
ज़मी पे बैठकर ही आसमाँ देखता हैं।

भागोगे जितना उतना गिरने की संभावनाएं होंगी,
संभलकर चलो तुमको सारा जहान देखता हैं।।

~मोhit

कहें भी तो कहें किसको, की हमारा खो गया क्या?
किसी को क्या की हमको, ये हो गया क्या?

खुली आँखों से अब नज़र आता नही कुछ,
सबसे पूछता फिरता हूँ, कि वो गया क्या?

देखो देखो, राहो की उदासी कुछ कह रही है,
रास्ते मे मुसाफ़िर कही खो गया क्या?

ये शहर इस कदर कब सुनसान था भला,
देखो न मेरा दिल भी कही सो गया क्या?

✍🏻✍🏻
~मोhit

हर दिन की तरह वो दिन भी निकल ही जायेगा,
सबको देर ही सही पर मेरी मौत का पैगाम मिल ही जायेगा।

थक जायेंगी धड़कने मेरी भी चलते-चलते,
रूकेंगी साँसे तो शायद मुझे भी आराम मिल ही जायेगा।।

~मोhit
✍🏻✍🏻

मुझपर भी है हज़ारो इल्ज़ाम, मुझसे दूर रहो,
तुम हो जाओगे मेरी ही तरह बदनाम, मुझसे दूर रहो।

तुम ऊगता सूरज, तुम ही तो आने वाला कल हो,
मैं हूँ एक ढलता हुआ शाम, मुझसे दूर रहो।।

सब ही जानते है अभिनेताओं का नाम,
ढूँढ़ो निर्देशक को वहीं हैं गुमनाम, मुझसे दूर रहो।

प्यास बहुत छोटी है तुम्हारी नही सम्भाल पाओगे,
मैं हूँ एक छलकता हुआ जाम, मुझसे दूर रहो।।

~मोhit
✍🏻✍🏻

पलट कर आऊँगा मैं शाखों पर खुशबू लेकर,
खिजाँ की ज़द में हूँ,
मौसम थोड़ा बदलने तो दो।

वही रुतबा फिर से वही जलाल होगा,
अभी वक़्त बुरा है, इसे ज़रा गुज़रने तो दो।।

~मोhit

सरहाना करता हूँ मैं, आपके जज़्बे का,
पूरा ज़माना ख़रीदना, ये बात किसी से कम नहीं...

पर आप बात कर रही है पूरे ज़माने की, 
पर अफ़सोस ये की उस ज़माने से हम नहीं...

~मोhit

ज़माने में रहकर ,ज़माने की बात करता हुँ,
ख्वाबों में नहीं रहता,हक़ की बात करता हुँ।
ज़माने की इन रस्मों से परे है क़िरदार मेरा,
मैं मुश्किल सफ़र में हंसी की बात करता हूँ।।

~मोhit

रास्तों को नई मंज़िलों से मिलाया है मैंने,
ज़िंदगी के उल्फतो को अज्जियत से मिलाया है मैंने।

पतवार को डुबाकर, नाव को चलाया हैं मैंने,
इस किनारे को उस किनारे से मिलाया है मैंने।।

अंधेर नगरी को रौशनी से जलाया है मैंने,
इन काली रातों को जुगनुओं से मिलाया हैं मैंने।

वो कौन और क्या है? 
इसका एहसास उन्हें बताया है मैंने,
उनकी गलतफहमी को आइनों से रू-ब-रू कराया हैं मैंने,

मशरुफियत से कुछ फुरसत निकाल कर,
आदमी को आदमी से मिलाया है मैंने।।

~मोhit


फूलों सा बदन और पत्थर सा दिल रखती हैं,
होठों पर मुस्कान और निगाहों में खंज़र रखती हैं।।

बचकर रहना 'मोहित',बड़ी क़ातिल अदा है उसकी,
बुलाती है क़रीब और गले पर तलवार रखती हैं।।

~मोhit

मैं ग़ज़ल हूँ, गीत कैसे बनूँ?
जो तुम्हें चाहिये, वो मीत कैसे बनूँ?

ठहरी हुई हैं एक खामोशी मेरे मन मे!
तेरे जीवन का संगीत कैसे बनूँ?

तुम सावन हो, मैं जून का ताप हूँ,
तुम जीवन हो, मैं बस संताप हूँ,

मैं स्वयं हार हूँ ,जीत कैसे बनूँ?
जो तुम्हे चाहिए वो मीत कैसे बनूँ?

~मोhit

तेरे होने से डरता नही हूँ,
तेरे न होने से डर लगता हैं।

तेरी ममता ही कुछ ऐसी है "माँ",
की हर इंसान तेरे बिना रह ही नही सकता हैं।।

~मोhit

मोहब्बत तो करूँगा, पर बयां नहीं करूंगा,
अब किसी से मोहब्बत की बात नहीं करूंगा।।
बेवज़ह लोग ग़लत समझ लेते हैं मुझे,
अब दिल, दर्द और इश्क़ की बात नहीं करूंगा।।

~मोhit✍✍

यहाँ हर एक दिल व्यथित हैं,
यहाँ सबकी अपनी एक कहानी हैं।

यहाँ हर कोई श्याम हैं,
यहाँ हर मीरा दीवानी हैं।।

इस अज़ब-गज़ब सी दुनियां में,

मीरा का नटवर नागर है,
नागर की राधा रानी है।।

यहाँ हर एक दिल व्यथित हैं,
यहाँ सबकी अपनी एक कहानी हैं।

~मोhit

मेरी ज़िन्दगी कुछ नही अब, एक सवाल बन गयी,
उतारा क़लम से मैंने जब कागज़ में तो, एक किताब बन गयी।

समझना तो चाहा कइयों ने मगर समझ न आई,
मुदातो बाद फिर पढ़ा तो, कइयों का ज़वाब बन गयी।।

~मोhit

शहर और उसकी गलियों में,
ख़ामोशी का मातम छाया है;
हर शख्स अपना होकर भी,
आज न जाने क्यों पराया है..!!

नन्हा सा वायरस जो चीन के, 
वुहान शहर से आया है;
पूरी धरती पे उसने,
न जाने कितना आतंक फैलाया है..!!

प्राणी और पशु-पंखीयो को,
इंसान ने आज तक कैद रखा हैं;
मगर आज उन्हें आज़ाद और,
इंसानो को कैद कर रखा है..!!

कैदभरी जिंदगी में,
एक पल भी गुजारना मुश्किल है;
लूडो खेलकर या पूरा दिन सोकर,
जैसे तैसे वक्त को गुजारा है..!!!

काम-काज और सारे धंधे,
ग़रीब लोगों के बंध हो गए है;
उस ग़रीब से जाके पूछो, 
कैसे निवाले का इंतजाम हुआ है..!!

जुदाई का दर्द उस माँ को पूछो,
जिस माँ को "कोरोना" हुआ है;
की कैसे पांच महीने के बच्चे को,
उसने अपनी गोद से जुदा किया है..!!

पुलिस वाले रात-दिन जागकर,
हमारे लिये धूप में खड़े रहते है;
हम लोगों के पथ्थर खाकर,
फिर भी हमे "कोरोना" से बचाया हुआ है..!!

अपनी जान जोखम में डालकर,
न जाने कितनों की जान बचाई है;
मौत सर पे दिन रात मंडराती रही,
फिर भी मुस्कुराहट को होठों पे,
सजाया हुआ है..!!

सभी देशों के पीएम,
"कोरोना" से हार मानकर बैठ गये है;
मगर हिंदुस्तान जैसे बड़े मुल्क में,
पीएम ने एक साथ हम सबका हाथ उठवाया है..!!

इस "मोहित" के छोटे से जंग में,
शामिल होकर हमें दिखाना है;
सभी हिन्दुस्तानियों को एक साथ मिलकर,
हिंदुस्तान में फैले इस "कोरोना" को मिलकर हराना है..!!

~मोhit Iyer

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