मैंने खुद अकेले रहने की सज़ा कुबूल की हैं,
ये मेरा प्यार हैं या मैंने कोई भूल की हैं।
ख़्याल आया है तो रास्ता भी बदल लेंगे,
अभी तलक़ तो मैंने अपनी बहुत ज़िंदगी फ़िज़ूल की हैं।।
ख़ुदा करे कि मैं ज़मी का ही हो जाऊं,
आधी से ज़्यादा अपनी ज़िंदगी मैंने सफ़र में धूल की हैं।
ये शौहरत, ये नाम हमें युही अता नही हुई हैं,
ज़िन्दगी ने हम से भी कई कीमत वसूल की हैं।।
~मोhit
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