रास्तों को मंज़िलों से मिलाया हैं मैंने....

रास्तों को नई मंज़िलों से मिलाया है मैंने,
ज़िंदगी के उल्फतो को अज्जियत से मिलाया है मैंने।

पतवार को डुबाकर, नाव को चलाया हैं मैंने,
इस किनारे को उस किनारे से मिलाया है मैंने।।

अंधेर नगरी को रौशनी से जलाया है मैंने,
इन काली रातों को जुगनुओं से मिलाया हैं मैंने।

वो कौन और क्या है? 
इसका एहसास उन्हें बताया है मैंने,
उनकी गलतफहमी को आइनों से रू-ब-रू कराया हैं मैंने,

मशरुफियत से कुछ फुरसत निकाल कर,
आदमी को आदमी से मिलाया है मैंने।।

~मोhit


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